“मेरे सतगुरु दीनदयाल काग को हंस बनाते हैं” भजन के पूर्ण लिरिक्स, MP3 Download, और PDF फॉर्मेट में प्राप्त करें! अब आप इस भजन को कहीं भी, कभी भी अपने साथ रख सकते हैं और भगवान के प्रति अपनी भक्ति को गहरा कर सकते हैं। इस भजन के बोल न केवल दिल को छूने वाले हैं, बल्कि आपके जीवन में शांति और सुख भी ला सकते हैं। तो देर किस बात की? आज ही डाउनलोड करें और भगवान की शरण में समर्पण का अनुभव करें!
मेरे सतगुरु दीनदयाल काग को हंस बनाते हैं
मेरे सतगुरु दीनदयाल काग को हंस बात बनाते हैं
काग को हंस बनाते हैं काग को हंस बनाते हैं
हो मेरे सतगुरु दीनदयाल काग को हंस बनाते हैं……
भरया जहां भक्ति का भंडार
लग्या जहां सतगुरु का दरबार
शब्द अनमोल सुनाते हैं वो मन का भरम मिटाते हैं
हो मेरे सतगुरु दीनदयाल काग को हंस बनाते हैं……
गुरुजी सत्य का देते हैं ज्ञान
जीव का हो ईश्वर में ध्यान
वो अमृत खूब पिलाते हैं वो मन की प्यास बुझाते हैं
हो मेरे सतगुरु दीनदयाल काग को हंस बनाते हैं……
गुरुजी लेते नहीं कुछ दान
वह खुद ही रखते भक्तों का ध्यान
वे अपना माल लूटते हैं सभी का कष्ट मिटाते हैं
हो मेरे सतगुरु दीनदयाल काग को हंस बनाते हैं…….
करो सब गुरु चरणों में ध्यान
ये तुमसे करते भक्त बयान
सारा दुख गुरुजी मिटाते हैं के भाव से पर लगाते हैं
हो मेरे सतगुरु दीनदयाल काग को हंस बनाते हैं……
Mere Satguru Deen Dayal Kaag Ko Hans Banate Hain
Mere Satguru Deen Dayal Kaag Ko Hans Banate Hain
Kaag Ko Hans Banate Hain Kaag Ko Hans Banate Hain
Ho Mere Satguru Deen Dayal Kaag Ko Hans Banate Hain……
Bharya Jahaan Bhakti Ka Bhandar
Lagya Jahan Sataguru Ka Darabar
Shabd Anmol Sunate Hain Vo Man Ka Bharam Mitate Hain
Ho Mere Satguru Deen Dayal Kaag Ko Hans Banate Hain……
Guruji Saty Ka Dete Hain Gyan
Jeev Ka Ho Iishwar Mein Dhyan
Vo Amrit Khub Pilate Hain Vo Man Ki Pyas Bujhate Hain
Ho Mere Satguru Deen Dayal Kaag Ko Hans Banate Hain……
Guruji Lete Nahi Kuchh Daan
Vah Khud Hi Rakhate Bhakton Ka Dhyan
Ve Apana Maal Lutate Hain Sabhi Ka Kasht Mitate Hain
Ho Mere Satguru Deen Dayal Kaag Ko Hans Banate Hain…….
Karo Sab Guru Charno Mein Dhyan
Ye Tumse Karate Bhakt Bayan
Sara Dukh Guruji Mitate Hain Ke Bhaav Se Par Lagate Hain
Ho Mere Satguru Deen Dayal Kaag Ko Hans Banate Hain……
“मेरे सतगुरु दीनदयाल काग को हंस बनाते हैं” एक गहरा अर्थ रखने वाला भजन है जो गुरु की महिमा और उनकी कृपा का वर्णन करता है। इस गीत में गुरु को जीवन का मार्गदर्शक और उद्धारकर्ता बताया गया है, जो साधारण इंसान को दिव्यता के मार्ग पर ले जाते हैं। “काग” यानी कौआ, जो सामान्यता और अशुद्धता का प्रतीक है, और “हंस” यानी राजहंस, जो पवित्रता और विवेक का प्रतीक है—इन दोनों के माध्यम से यह बताया गया है कि गुरु कैसे व्यक्ति के जीवन को शुद्ध और सार्थक बनाते हैं।
भजन के बोल सरल लेकिन प्रभावशाली हैं। इसमें यह कहा गया है कि गुरु अपने ज्ञान और दया से व्यक्ति को संसार के भ्रम से मुक्त कर सच्चाई और आध्यात्मिकता की ओर ले जाते हैं। गुरु के बिना जीवन को अधूरा माना गया है, और यह भजन उसी सत्य को उजागर करता है। इसमें “भवसागर” (संसार रूपी सागर) से तारने और “माया” (भ्रम) से मुक्त करने जैसे प्रतीकात्मक बिंबों का उपयोग किया गया है, जो जीवन के गहरे सत्य को व्यक्त करते हैं।
यह भजन न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भक्ति और समर्पण की भावना को भी गहराई से उभारता है। यह गुरु के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का एक सुंदर माध्यम है। इसकी प्रस्तुति आमतौर पर हारमोनियम, तबला और मंजीरा जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ की जाती है। गीत के मधुर स्वर और गहरे अर्थ इसे हर उम्र के लोगों के लिए प्रिय बनाते हैं।
एक दिलचस्प तथ्य यह है कि “काग को हंस बनाना” भारतीय संत परंपरा में एक प्रचलित उपमा है। इसे उस प्रक्रिया का प्रतीक माना जाता है, जिसमें गुरु अपने ज्ञान और मार्गदर्शन से शिष्य के जीवन को निखारते हैं। संत कबीर, तुलसीदास और अन्य महान कवियों ने भी इसी प्रकार के उपमाओं का प्रयोग अपने दोहों और भजनों में किया है। यह भजन उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए गुरु की असीम महिमा को उजागर करता है।
इस भजन को सुनने और गाने वाले भक्त इसे अपनी साधना का हिस्सा बनाते हैं। यह न केवल भक्तों को आंतरिक शांति प्रदान करता है, बल्कि उन्हें गुरु की कृपा से जुड़े रहने की प्रेरणा भी देता है। इस गीत को अपनी रोजमर्रा की पूजा में शामिल करें और गुरु की दिव्यता का अनुभव करें। प्रकार के उपमाओं का प्रयोग अपने दोहों और भजनों में किया है। यह भजन उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए गुरु की असीम महिमा को उजागर
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